यहीं पर कर्तिकाय, भगवान शिव के जयेष्ट पुत्र का आदि काल का प्राचीन मंदिर है । भगवान कर्तिकाय ने अपनी माँ पार्वती से नाराज हो कर अपना शरीर त्याग दिया था । यह कहते हुए कि जो भी स्त्री आज के बाद मेरे दर्शन करेगी वह सात जन्म तक विधवा का जीवन व्यतीत करेगी, उन्होंने शिखा पकड़कर अपनी त्वचा माता को व हड्डियाँ पिता को सौंप दी थी । यह वही प्राचीनतम जगह है जहाँ आज लाखों की संख्या में श्रद्धालु तेल चढाते और पितरों कि आत्मा को शांति पहुंचाते हैं । स्त्रियां आज भी इस मंदिर में नहीं जाती ।
सरस्वती नदी के किनारे पर हजारों वर्ष पुराना विशाल प्रेत पीपल का वृक्ष है । श्रद्धालु इस में पानी देते व कच्चा सूत लपेटते हुए परिक्रमा करते हैं । हर प्रकार की पितृ पीडा यहाँ सरस्वती नदी में नहाने व पिंड दान करने से दूर हो जाती है ।
यहीं पर ब्रह्म्जून नाम से एक जगह है । ब्रह्मा ने यहीं पर सृष्टि का निर्माण किया था ।
प्राची नाम से एक तीर्थ है जहां पर ऋषि विश्वामित्र व वशिष्ठ के झगडे में सरस्वती मैया को विपरीत दिशा में बहाना पड़ा था । पुरानों में इसे पृथोदक नाम से जाना जाता है ।
इसी एतिहासिक व धार्मिक स्थान पर हमारे पूर्वजों ने व्यास धर्मशाला का निर्माण करवाया । हर वर्ष यहाँ चैत्र की त्रयोदश से अमावस्या तक बिरादरी के लोग आते हैं और चौदस को दोपहर 2 बजे मीटिंग होती है ।
हर तीन वर्ष के बाद चुनाव होते हैं ।
उत्तर भारत औदिच्य सभा के उद्देश्य इस प्रकार हैं :
- बिरादरी भाइयों को आपस में परिचित करना और मेल जोल को बढ़ावा देना ।
- बिरादरी व समाज के उत्थान के लिए विभिन्न कार्य करना ।
- बिरादरी में विवाह सम्बन्ध स्थापित करवाना ।
- व्यास धर्मशाला की देख रेख व निर्माण कार्य करवाना ।
- बेसहारा व विधवा महिलाओं को सिलाई मशीनें देकर मदद करना ।
- शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए मेधावी छात्रों को पुरस्कृत करना ।
- गरीब व असहाय रोगियों की मदद करना ।
आप सभी से प्रार्थना है की हर वर्ष इस सम्मलेन में भाग लेने के लिए अवश्य पेहोवा आयें और व्यास सभा के उत्थान के लिए अपना हर प्रकार का सहयोग देकर पुण्य के भागी बनें ।
रहने और खाने की पूरी व्यवस्था सभा द्वारा की जाती है ।
धन्यवाद
प्रद्युमन भार्गव (कुरुक्षेत्र)
(pardumanbhargava53@gmail.com)